पाथरकछार (पथरीगढ़) काली माता मंदिर

 



अष्ट भुजा माता दुर्गा जी की प्रतिमा

मंदिर के सामने का स्थान व तालाब

        यह मंदिर पाथरकछार (पथरीगढ़) की काली देवी या काली माता मंदिर के नाम से जाना जाता है और इस मंदिर का इतिहास 16वीं शताब्दी से जुड़ा है इस मंदिर का निर्माण सैनी परिवार और स्थानीय लोगों के द्वारा किया गया था। परंतु यह प्रतिमा काली माता की नहीं है। अष्ट भुजा माता दुर्गा जी की है यह प्रतिमा दिन में तीन बार अपना रूप बदलतीं है। माता दुर्गा जी प्रतिमा पहले, बकोट में बने राजमहल राजा ज्वाला सिंह के महेल के बगल में पहाड़ के नीचे मंदिर में स्थापित थी। सामने एक कुआँ भी था। जो वर्तमान में ख़राब हो चूका है।


राजमहल जो पहाड़ी पर बना था।


          राजाओं का समय काल ख़त्म होने के बाद। 1972 में अष्ट भुजा माता दुर्गा जी की प्रतिमा को तालाब के सामने एक छोटे से मंदिर में स्थापित कर दिया गया। किंतु कुछ स्थानीय लोगों द्वारा बताया जाता है .की माता दुर्गा जी ने सपनों में आकर कहा था कि मेरा स्थान बदला जाए क्योंकि किले में पूजा अर्चना आदि अच्छे तरीके से नहीं हो पाती थी। और बहा की बस्ती उजड़ने के बाद वह स्थान बिरानं सा होने के कारण जो नजदीकी बस्तियाँ बची थी वे जंगल होने के कारण नहीं पहुँच पते थे। इसलिए कुछ समय के बाद किले से माता दुर्गा जी प्रतिमा को पाथरकछार के (पथरीगढ़) नामक स्थान पर स्थापित कर दिया गया था।

        इस मंदिर के पास दो और मंदिर है। पहला श्री सीता राम मंदिर है, जो पैराणिक बताया जाता है। दूसरा कृष्ण मंदिर जो अद्भुत तरीके से बना हुआ है। यह स्थान बहुत ही आकर्षक है। खासकर बारिस के मौसम में बहुत सुन्दर नजारा होता है।

        यह थोड़ा भ्रमित करने वाला हो सकता है। क्योंकि पथरीगढ़ का मुख्य किला, जिसका संबंध राजा ज्वाला सिंह और आल्हा-ऊदल की कहानियों से है, वह दतिया जिले (मध्य प्रदेश) में स्थित है, न कि सतना जिले में। यह समझना महत्वपूर्ण है कि जिस राजा ज्वाला सिंह और उनकी मायावी शक्तियों (जिससे सेना पत्थर की बन गई थी, और इसलिए नाम "पथरीगढ़" पड़ा) का मुख्य संबंध है, वह किला दतिया जिले (मध्य प्रदेश) के देवगढ़ में स्थित है, जो झांसी से लगभग 100 किमी दूर है। यह वही पथरीगढ़ है जहां राजा ज्वाला सिंह ने आल्हा की पत्नी मछला को बंदी बनाया था। और जिसके लिए आल्हा-ऊदल ने भीषण युद्ध किया था।

मंदिर के सामने की तस्वीर

            
            पौराणिक संबंध:- इस स्थान का संबंध भी आल्हा-ऊदल की गाथाओं से जोड़ा जाता है। कुछ लोककथाओं के अनुसार, सतना जिले में स्थित इस मंदिर के पास ही आल्हा ने अपनी कुलदेवी, मां शारदा (मैहर में स्थित) या मनिया देवी की तपस्या की थी। यह भी कहा जाता है कि इसी स्थान पर उन्होंने अपने पुत्र इन्दल की बलि दी थी और बाद में उन्हें पुनर्जीवन मिला था। यह घटना, जैसा कि हमने पहले चर्चा की, आल्हा-ऊदल की वीरगाथा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।


मंदिर का तस्वीर
        
        सतना जिले में "पाथर कछार" या "पथरीगढ़ का मंदिर" यह एक अलग स्थान है, जो सतना जिले के मझगवां तहसील में है, और इसका भी संबंध आल्हा-ऊदल की कहानियों से है, विशेषकर आल्हा के बलिदान और तपस्या से।

        इसलिए, जब "सतना जिले में पथरीगढ़" की बात आती है, तो इसका तात्पर्य आमतौर पर पाथरकछार के मंदिर से होता है, न कि दतिया के प्रसिद्ध पथरीगढ़ किले से।

         यह जगह मध्य प्रदेश के सतना जिला मझगवां तहसील के ग्राम पंचायत पाथरकछार में स्थित है। इसके निकट मुख्य गांव बेलौहन पुरवा, गड़रियन पुरवा, द्वाना, रामपुर, रानीपुर, ग्राम डढ़िया, कतकहा, खोही आदि बरौंधा थाना के अंतर्गत है। यहाँ पर पहुंचने के लिए तीन जिलों से होते हुए पहुँच सकते है। सतना जिला मध्य प्रदेश से होते हुए। मझगवाँ तहसील, पिंडरा से मुड़ कर बरौंधा होते हुए पाथरकछार (पथरीगढ़) पहुँच सकते है। दूसरा उत्तर प्रदेश के बाँदा जिला से नरैनी तहसील, सढा से रामपुर पहुँच कर पाथरकछार (पथरीगढ़) पहुँच सकते है। तीसरा रास्ता पन्ना जिला के अजयगढ़ तहसील या सतना के नागौद तहसील से होते हुए, कालिंजर पहुँच सढा से रामपुर पहुँच कर पाथरकछार (पथरीगढ़) पहुँच सकते है।

यह मंदिर के पीछे के रोड का तस्वीर है

           यहां पहुंचने के लिए आम जनता के लिए कोई साधन नहीं है। इसलिए स्वयं के साधन से पहुंचना उचित होगा क्योंकि यह क्षेत्र बहुत ही पिछड़ा हुआ है। किन्तु रोड व्यवस्था मंदिर तक पहुंचने के लिए है। और ज्यादा आम जनता वहां पर निवास नहीं करती है। इसलिए दिन में जाना बेहतर होगा यहां पर नवदुर्गा (नवरात्रि) में बहुत ज्यादा आम जनता एकत्रित होती है। तथा जवारे आदि ले जाते हैं जिन लोगों की मन्नत होती है और उनकी मन्नत मांगे जाने पर पूरी होती है। तो जो पूजा प्रतिष्ठा की मन्नत मांगते हैं वे लोग यहां आकर पूजा प्रतिष्ठा पूरी करते हैं। इसलिए नवरात्रि में यहां पर अधिक आम जनता एकत्ररित होती है।


        इस स्थान पर हर वर्ष साल के एक बार मकर संक्रांति में मेला भी लगता है। इस दिन तो यहां पर बहुत ही ज्यादा आम जनता आती है। और यह मेला काली माता मंदिर के सामने बने तालाब के बगल में लगता है। और वर्ष में एक बार दंगल भी स्थानीय सरपंच द्वारा कराया जाता है। इसलिए इस स्थान को और विकास की अति आवश्यकता है जिससे स्थानीय लोगों को रोजगार हेतु कुछ व्यवस्था हो सके।

मंदिर के सामने के तालाब की तस्वीर

            इस मंदिर का कोई लिखित या पुरातात्त्विक साछ्य तो नहीं मिला, परन्तु स्थानीय लोगो व बुजुर्गो द्वारा बताये। अनुसार एवं इंटरनेट के द्वारा एकत्रित की जानकारी के अनुसार ऊपर का विवरण दिया गया है, परन्तु वर्तमान में जो है वह सच और साछ्य है।

        यह मेरे द्वारा एकत्रित की गई जानकारी आपको कैसी लगी टिप्पणी (Comment) करके अपनी प्रतिक्रिया जरुर दें। धन्यवाद,


मस्त रहे स्वस्थ रहे। मिलते है एक नई जानकारी के साथ ।

जय हिन्द जय भारत।
जय जवान जय किसान।



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टिप्पणियाँ

बेनामी ने कहा…
Apka Information kaphi achha hai

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